Tuesday, July 24, 2012

aakrosh

दो सांस ज़रा भर लेने दो मेरे इस सीने में,
जान अभी बाकी है इस ज़र्ज़र् पिजरे में ।
दो कदम चल लडखडाता है, गिर पडता है,
पर हिम्मत अभी बाकी है, हार रहे इस दिल में।

तानो के गलियारो में, मीठे बोलो की उम्मीद नही
सपनो की धुन्ध छुपाये इन नकली चेहरो को, वही सही।
ये बिकते ज़मीरो के बाज़ार में, रोशनी भी बेबस है
इन नापाक अन्धेरो के सब, पर, मै इनकी गुलाम नही।

 
आज धूल में घुली सही, कल मै बन आन्धी आऊन्गी ,
दुनिया के उसूल को तज के, खुद के नियम बनाऊन्गी।
फ़िर ये मौखल मेरा उडाने वाले अन्धेरे में खो जायेगे,
मै रौशन, रौशनी मै, मै सूरज बन जाऊगी।