जिन उँगलियों को पकड़ कर चलना सीखा ,
आज उन्हें छोड़ किस्मत के पीछे भाग रही हूँ ।
जिन हाथों में अपने सहारे पाती थी मैं ,
आज उन्हीं से इतनी दूर जा चुकी हूँ।
जिस लोरी में मैं अपनी नींद तलाशती थी ,
आज वही सुनने को तरस जाती हूँ ।
जिस डांट से मैं बरसों भगा करती थी ,
आज वही वक्त से चुनने की कोशिश करती हूँ।
जिनको कभी अपनी आंखों से दूर न करती थी ,
आज उनकी तस्वीर से यादों की धूल हटाती हूँ।
जिनकी सीख से मेरी दुनिया रौशन होती थी,
आज भी मैं वही दिये जलाती हूँ।
जिनकी गोद में मेरी नींद जगह पाती थी ,
आज तकिये को वही समझ सो जाती हूँ।
जिनकी जिंदगी मेरे नखरे उठाते बीती थी,
आज भी उन्हीं से कुछ तोहफे मांगती हूँ।
जिनको हर पल मेरी याद सताती है ,
आज मैं उन्हें एक बात बताती हूँ ।
'जितने भी दूर हुए तोह क्या ,
आज अपने में मैं आपको ही पाती हूँ ।
bahut badhiya!!!
ReplyDeletei wish i knew hindi better so i could appreciate ur poems in hindi!!
Wonderful ending, Arpitaji :)
ReplyDelete