Friday, November 23, 2012

कलयुगी मानव

कलपुरजों का एक उपासक,
है यही कलयुगी लोभी मानव,
संवेदना से परे विचरता,
ना जीने सा जीवन जीता.


था कभी यह भी जीवन्त,
पर इच्छाएँ भी थी अनन्त.
बस धन-जन-शक्ति पाने में,
मिट गया यह आप मिटाने में.
          
मशीनों सा अब चलता है ,
दिल धड़कता नही खटकता है.
सोने की देह, हृदय पाषाण,
बस काया है , छूमन्तर प्राण,
खाली आखें मृत अतृप्त ,
पर फ़िर भी कहें हम संतृप्त .           
   

Thursday, October 11, 2012

नभ तेरी हो जाऊँ मैं

ये पंख देख इतराऊँ मैं ,
मन मुस्काऊँ, लजा जाऊँ मैं,
रन्गबिरन्गे इन परों को आज पसार,
अब नभ तेरी हो जाऊँ मैं.
 
देख पवन पर खुजलाऊँ मैं,
चाहे मन हवा हो जाऊँ मैं,
कर बेडियाँ स्वातंत्र्य पर निसार,
अब नभ तेरी हो जाऊँ मैं.

नीले इस अंबर खो जाऊँ मैं,
हर दुख से लुक-छुप जाऊँ मैं,
बस तेरा ही प्राभुत्व कर स्वीकार,
अब नभ तेरी हो जाऊँ मैं.

Tuesday, July 24, 2012

aakrosh

दो सांस ज़रा भर लेने दो मेरे इस सीने में,
जान अभी बाकी है इस ज़र्ज़र् पिजरे में ।
दो कदम चल लडखडाता है, गिर पडता है,
पर हिम्मत अभी बाकी है, हार रहे इस दिल में।

तानो के गलियारो में, मीठे बोलो की उम्मीद नही
सपनो की धुन्ध छुपाये इन नकली चेहरो को, वही सही।
ये बिकते ज़मीरो के बाज़ार में, रोशनी भी बेबस है
इन नापाक अन्धेरो के सब, पर, मै इनकी गुलाम नही।

 
आज धूल में घुली सही, कल मै बन आन्धी आऊन्गी ,
दुनिया के उसूल को तज के, खुद के नियम बनाऊन्गी।
फ़िर ये मौखल मेरा उडाने वाले अन्धेरे में खो जायेगे,
मै रौशन, रौशनी मै, मै सूरज बन जाऊगी।